राम के भक्त कहाँ, बन्दा-ए- रहमान कहाँ
तू भी हिंदू है कहाँ, मैं भी मुसलमान कहाँ
तेरे हाथों में भी त्रिशूल है गीता की जगह
मेरे हाथों में भी तलवार है कुरआन कहाँ
तू मुझे दोष दे, मैं तुझ पे लगाऊँ इल्जाम
ऐसे आलम में भला अम्न का इम्कान कहाँ
आज तो मन्दिरो मस्जिद में लहू बहता है
पानीपत और पलासी के वो मैदान कहाँ
कर्फ्यू शहर में आसानी से लग सकता है
सर छुपा लेने को फुटपाथ पे इंसान कहाँ
किसी मस्जिद का है गुम्बद, के कलश मन्दिर का
इक थके-हारे परिंदे को ये पहचान कहाँ
पहले इस मुल्क के बच्चों को खिलाओ खाना
फिर बताना उन्हें पैदा हुए भगवान कहाँ
तू भी हिंदू है कहाँ, मैं भी मुसलमान कहाँ
तेरे हाथों में भी त्रिशूल है गीता की जगह
मेरे हाथों में भी तलवार है कुरआन कहाँ
तू मुझे दोष दे, मैं तुझ पे लगाऊँ इल्जाम
ऐसे आलम में भला अम्न का इम्कान कहाँ
आज तो मन्दिरो मस्जिद में लहू बहता है
पानीपत और पलासी के वो मैदान कहाँ
कर्फ्यू शहर में आसानी से लग सकता है
सर छुपा लेने को फुटपाथ पे इंसान कहाँ
किसी मस्जिद का है गुम्बद, के कलश मन्दिर का
इक थके-हारे परिंदे को ये पहचान कहाँ
पहले इस मुल्क के बच्चों को खिलाओ खाना
फिर बताना उन्हें पैदा हुए भगवान कहाँ
साभार: शकील हसन शम्सी